सांसों की माला जस-जस शहनाई में घुलती, त्यों-त्यों रूहानी धुन साज बनकर निकलती। फिर क्या, हर कोई कायल हो जाता। जी हां, बात उस्ताद बिस्मिलाह खां की हो रही है।
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» पुण्यतिथि आजः दिलो-दिमाग में आज भी लयबद्ध हैं उस्ताद बिस्मिल्ला खां की शहनाई की धुनें
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